5 कहानियाँ जो आपको अपने लक्ष्य तक ले जाने को मजबूर कर देगी
5 कहानियाँ जो आपको अपने लक्ष्य तक ले जाने को मजबूर कर देगी
5 कहानियाँ जो आपको अपने लक्ष्य तक ले जाने को मजबूर कर देगी
सुकरात ने उस इंसान को कहा कि वह कल सुबह नदी के पास मिले, वही पर उसे अपने प्रश्न का जवाब मिलेगा।
जब दूसरे दिन सुबह वह व्यक्ति नदी के पास मिला तो सुकरात ने उसको नदी में उतरकर, नदी गहराई की गहराई मापने के लिए कहा।
वह व्यक्ति नदी में उतरकर आगे की तरफ जाने लगा| जैसे ही पानी उस व्यक्ति के नाक तक पहुंचा, पीछे से सुकरात ने आकर अचानक से उसका मुंह पानी में डुबो दिया। वह व्यक्ति बाहर निकलने के लिए झटपटाने लगा, कोशिश करने लगा लेकिन सुकरात थोड़े ज्यादा Strong थे। सुकरात ने उसे काफी देर तक पानी में डुबोए रखा।
कुछ समय बाद सुकरात ने उसे छोड़ दिया और उस व्यक्ति ने जल्दी से अपना मुंह पानी से बाहर निकालकर जल्दी जल्दी साँस ली।
सुकरात ने उस व्यक्ति से पूछा – “जब तुम पानी में थे तो तुम क्या चाहते थे?” व्यक्ति ने कहा – “जल्दी से बाहर निकलकर सांस लेना चाहता था।”
सुकरात ने कहा – “यही तुम्हारे प्रश्न का उतर है। जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे जितनी तीव्र इच्छा से तुम सांस लेना चाहते है, तो तुम्हे सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।”
2.अभ्यास का महत्त्व
प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करते थे।. बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था। बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल किया करते थे. और अध्ययन भी किया करते थे।
वरदराज को भी सभी की तरह गुरुकुल भेज दिया गया। वहां आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने मिलने लगा।
लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही कमजोर था। गुरुजी की कोई भी बात उसके बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है।
उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया।
गुरुजी जी ने भी आखिर हार मानकर उसे बोला, “बेटा वरदराज! मैने सारे प्रयास करके देख लिये है। अब यही उचित होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो। अपने घर चले जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”
वरदराज ने भी सोचा कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं हैं। और भारी मन से गुरुकुल से घर के लिए निकल गया गया। दोपहर का समय था। रास्ते में उसे प्यास लगने लगी। इधर उधर देखने पर उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थी। वह कुवे के पास गया।
वहां पत्थरों पर रस्सी के आने जाने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओ से पूछा, “यह निशान आपने कैसे बनाएं।”
तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस कोमल रस्सी के बार बार आने जाने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए हैं।”
वरदराज सोच में पड़ गया। उसने विचार किया कि जब एक कोमल से रस्सी के बार-बार आने जाने से एक ठोस पत्थर पर गहरे निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से में विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।
वरदराज ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आया और अथक कड़ी मेहनत की। गुरुजी ने भी खुश होकर भरपूर सहयोग किया। कुछ ही सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना। जिसने लघुसिद्धान्तकौमुदी, मध्यसिद्धान्तकौमुदी, सारसिद्धान्तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी की रचना की।
शिक्षा(Moral):
दोस्तो अभ्यास की शक्ति का तो कहना ही क्या हैं।. यह आपके हर सपने को पूरा करेगी। अभ्यास बहुत जरूरी है चाहे वो खेल मे हो या पढ़ाई में या किसी ओर चीज़ में। बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते हो। अगर आप बिना अभ्यास के केवल किस्मत के भरोसे बैठे रहोगे, तो आखिर मैं आपको पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगेगा। इसलिए अभ्यास के साथ धैर्य, परिश्रम और लगन रखकर आप अपनी मंजिल को पाने के लिए जुट जाए।
3. अभिनव बिन्द्रा: जिद और जुनून ने दिलाया गोल्ड
ओलम्पिक में भारत को गोल्ड मेडल मिलने से हर भारतवासी खुशी से झूम उठा। बिन्द्रा की ज़िद और जुनून ने उन्हें इस मुकाम पर पहुँचाया है। बैंकॉक में हुए वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में बिन्द्रा की टीममेट रहीं इण्टरनेशनल शूटर श्वेता चौधरी ने कहा कि बिन्द्रा ने जो कहा, वह कर दिखाया। श्वेता मामूली अन्तर से ओलम्पिक टीम में जगह बनाने में नाकाम रहीं। श्वेता ने बताया कि बिन्द्रा ओलम्पिक गोल्ड के लिए पिछले चार साल से अनवरत मेहनत कर रहे थे। बिन्द्रा ने जो कहा, वह कर दिखाया।
ऐसे बदली दुनिया, श्वेता बताती हैं कि एथेन्स ओलम्पिक के बाद अभिनव के व्यवहार में चेन्ज आया। एथेन्स ओलम्पिक में पदक हासिल न करने के बाद ही उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वह अगला मौका (बीजिंग ओलम्पिक) नहीं गंवाएँगे। एक स्मरण सुनाते हुए श्वेता ने कहा कि बैंकॉक में वर्ल्ड चैम्पियनशिप के दौरान जब भारतीय टीम के अन्य शूटर शाम को शहर घूमने गए थे, बिन्द्रा जिम में एक्सरसाइज कर रहे थे। शायद अभिनव को एथेन्स ओलम्पिक में पदक नहीं जीतने का सदमा ऐसा लगा कि उनके व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया। उसके बाद से वह रिजर्व रहने लगे। इसके पहले वह साथियों के बीच आकर हँसी-मजाक करते थे। इसके बाद वह लगातार विदेशों में जाकर प्रैक्टिस करते रहे।
श्वेता ने बताया कि बिन्द्रा ने स्वयं ही अपने लिए प्राइवेट कोच, पादकलॉजिस्ट व फिजियो नियुक्त किया था। इसके बावजूद, छोटी प्रतियोगिताओं में उनके मेडल न जीतने पर कई बार उनकी आलोचना भी हई, परन्तु उनको जानने वाले जानते थे कि अभिनव में वह क्षमता है, जो वक्त आने पर बड़ी प्रतियोगिता में अवश्य दिखेगा। उनका टारगेट ओलम्पिक ही था।
4. भारत रत्न प्राप्त डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के एक गाँव धनुषकोडी में हुआ था। इनके पिता, मछुआरों को किराए पर नाव देते थे। कलाम ने अपनी पढ़ाई के लिए धन की पूर्ति हेतु अखबार बेचने का कार्य भी किया। डॉ. कलाम ने जीवन में अनेक चुनौतियों का सामना किया। उनका जीवन सदा संघर्षशील रहने वाले एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने कभी हार नहीं मानी तथा देशहित में अपना सर्वस्व न्योछावर करते हुए, सदा उत्कृष्टता के पथ पर चलते रहे। 71 वर्ष की आयु में भी वे अथक परिश्रम करते हुए भारत को सुपर पावर बनाने की ओर प्रयासरत थे।
भारत रत्न डॉ. अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। वे भारत रत्न से सम्मानित होने वाले तीसरे राष्ट्रपति हैं। भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक, डॉ. कलाम ने देश को ‘अग्नि’ एवं ‘पृथ्वी’ जैसी मिसाइलें देकर, चीन एवं पाकिस्तान को इनकी रेंज में लाकर, दुनिया को चौंका दिया।
एक बार एयरफोर्स के पायलेट के साक्षात्कार में 9वें नम्बर पर आने के कारण (कुल आठ प्रत्याशियों का चयन करना था) उन्हें निराश होना पड़ा था।
वे ऋषिकेश बाबा शिबानन्द के पास चले गए एवं अपनी व्यथा उन्हें सुनाई।
बाबा ने उन्हें कहा :-
Accept your destiny and go ahead with your life. You are not destined to become an Airforce Pilot. What you are destined to become is not revealed now but it is predetermined. Forget this failure, as it was essential to lead you to your existence. Become one with yourself, my son. Surrender yourself to the wish of God.
बाबा शिवानन्द का कहने का अर्थ यह था कि असफलता से निराश होने की आवश्यकता नहीं। यह असफलता आपकी दूसरी सफलताओं के द्वार खोल सकती है। तुम्हें जीवन में कहाँ पहुँचना है, इसका पता नहीं। आप कर्म करो, ईश्वर पर विश्वास करो।
डॉ. कलाम का जीवन, हर उस नवयुवक के लिए आदर्श प्रेरणा स्रोत है, जो अपने जीवन में एक असफलता मिलने पर ही निराश हो जाते हैं। डॉ. कलाम ने अपने सारे जीवन में नि:स्वार्थ सेवा कार्य किया। उनका राष्ट्र प्रेम और उनका देशभक्ति का ज़ज्बा हर भारतीय के लिए सबक एवं प्रेरणा का पुंज है और हमेशा रहेगा।
5. महान् गणितज्ञ रामानुजन: धुन के पक्के
वर्ष 1909 में उनकी शादी हुई, उसके बाद वर्ष 1910 में उनका एक ऑपरेशन हुआ। घरवालों के पास उनके ऑपरेशन हेतु पर्याप्त राशि नहीं थी। एक डॉक्टर ने उनका मुफ्त में यह ऑपरेशन किया था। इस ऑपरेशन के बाद रामानुजन नौकरी की तलाश में जुट गए। वे मद्रास में जगह-जगह नौकरी के लिए घूमे। इसके लिए उन्होंने ट्यूशन भी किए। वे पुनः बीमार पड़ गए।
इसी बीच वे गणित में अपना कार्य करते रहे। ठीक होने के बाद, उनका सम्पर्क नेलौर के जिला कलेक्टर-रामचन्दर राव से हुआ। वह रामानुजन के गणित में कार्य से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने रामानुजन की आर्थिक मदद भी की।
वर्ष 1912 में उन्हें मद्रास में चीफ अकाउण्टेंट के ऑफिस में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। वे ऑफिस का कार्य जल्दी पूरा करने के बाद, गणित का रिसर्च करते रहते, इसके बाद वे इंग्लैण्ड चले गए। वहाँ उनके कार्य को खूब प्रशंसा मिली। उनके गणित के अनूठे ज्ञान को खूब सराहना मिली।
वर्ष 1918 में उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज का फेलो (Fellow of Trinity College Cambridge) चुना गया। वह पहले भारतीय थे, जिन्हें इस सम्मान (Position) के लिए चुना गया।
बहुत मेहनती एवं धुन के पक्के थे। कोई भी विषम परिस्थिति, आर्थिक कठिनाइयाँ, बीमारी एवं अन्य परेशानियाँ उन्हें अपनी ‘धुन’ से नहीं डिगा सकीं। वे अन्ततः सफल हुए।
आज उन्हें विश्व के महान् गणितज्ञों में शुमार किया जाता है। 32 वर्ष की छोटी उम्र में ही इस प्रतिभाशाली व्यक्ति का देहावसान हो गया। दुनिया ने एक महान गणितज्ञ को खो दिया।
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